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यात्रा की शुरुआत: कौन है कौन

अर्जुन शर्मा, एक शांत से स्वभाव वाला, दिल में गहराई लिए हुए लड़का। उसकी आँखों में एक अलग ही सुकून है—जैसे कोई हमेशा सोचने से पहले महसूस करता हो। दिल से भावुक, और इतना नरम कि दूसरों की छोटी-छोटी चिंताएँ भी उसके भीतर हलचल पैदा कर देती हैं। जो भी उसके आसपास होता है, वह अपने मन में उसे लेकर चलता है—चाहे खुशियाँ हों या दुख। एक संस्कारी परिवार में पला-बढ़ा अर्जुन, जहाँ पिता की सख़्ती ने उसे अनुशासित बनाया और माँ की भावुकता ने उसके भीतर नरमी भर दी। घर का वातावरण हमेशा मूल्यों से भरा रहा—इसीलिए अर्जुन की बातों में, फैसलों में और सोच में एक परिपक्वता दिखती है, भले ही वह अभी जीवन की बड़ी जिम्मेदारियों से नहीं गुज़रा। कॉलेज में वह वाणिज्य से स्नातक कर रहा है, लेकिन उसका मन हमेशा टेक्नोलॉजी की दुनिया में घूमता रहता है। नई चीज़ें सीखना… समझना… खुद को रोज़ थोड़ा और बेहतर बनाना—यह उसकी आदत भी है और शौक भी। वह उन लोगों में से है जो रोज़ रात को सोने से पहले सोचते हैं—आज मैंने क्या नया सीखा? उसका सपना सीधा-सादा है लेकिन गहरा— एक दिन चार्टर्ड अकाउंटेंट बनना। अपने करियर में कुछ ऐसा हासिल करना जिससे खुद को और अपने परिवार को गर्व महसूस करा सके। अर्जुन का परिचय यहीं खत्म नहीं होता—क्योंकि उसके भीतर एक शांत लहर की तरह बहुत कुछ है, जिसे हम आगे कहानी में जानेंगे…

सुनीता शर्मा एक शांत, स्नेह से भरी और गहराई तक भावुक महिला हैं। उनकी आँखों में हमेशा अपने परिवार के लिए चिंता भी दिखती है और अपनापन भी। धर्म-भाव उनमें बचपन से बसा है—सुबह का पहला काम मंदिर की घंटी और शाम की आख़िरी सोच भगवान की कृपा। घर को संभालने में वे इतनी निपुण हैं कि जैसे पूरा परिवार उनकी उँगलियों के इशारे पर सलीके से चलता हो। हर चीज़, हर व्यक्ति, हर ज़रूरत—वे बिना कहे समझ लेती हैं। अर्जुन की संवेदनशीलता और नरम दिल का बड़ा हिस्सा उनकी ही छाया से आया है। लेकिन सुनीता सिर्फ घर तक सीमित नहीं रहीं। जब अर्जुन स्कूल में पढ़ता था, उसी समय से उन्होंने मेन मार्केट में अपनी एक छोटी लेकिन भरोसेमंद दुकान संभाल ली— महिलाओं की रोजमर्रा की जरूरत के सामान और खासतौर पर श्रीनगर की सामग्री वाली। उनकी दुकान में हमेशा एक गरमाहट होती है—जैसे वे चीज़ें नहीं, अपनापन बाँट रही हों। लोग उन्हें सिर्फ दुकानदार नहीं, “दीदी” कहकर याद रखते हैं। सुनीता की दुनिया बहुत बड़ी नहीं, लेकिन दिल बहुत बड़ा है। अपने पति की सख़्ती को अपने धैर्य से संतुलित करती हैं, और अपने बच्चों के सपनों को अपनी मुस्कान से ताकत देती हैं। अर्जुन के लिए वे सिर्फ माँ नहीं—एक आदत, एक भरोसा, एक बंदरगाह हैं जहाँ वह हर चिंता छोड़ सकता है।

महेश शर्मा ऐसे व्यक्ति हैं जिनकी मौजूदगी ही अनुशासन का एहसास करवाती है। घर में वे कम बोलते हैं, लेकिन जो भी कहते हैं, उसमें एक ठोस विश्वास और अनुभव की गूंज होती है। उनकी सख़्ती कठोरता नहीं, बल्कि एक ढाल है—जो वे अपने बच्चों के लिए हमेशा उठाए रखते हैं। गलती की गुंजाइश कम रखते हैं, क्योंकि वे चाहते हैं कि उनके बच्चे वही मुश्किलें न झेलें जो उन्होंने देखी हैं। मेन मार्केट में उनकी कार और मोटर साइकिल नंबर प्लेट व स्टीकर की दुकान वर्षों से उनकी पहचान बन चुकी है। यह काम सटीकता, साफ़ नज़र और धैर्य माँगता है—और महेश जी ये तीनों खूब निभाते हैं। दिन भर मशीनों की आवाज़, ग्राहकों का आना-जाना, अलग-अलग नंबरों और डिज़ाइनों के बीच उनका शांत, दृढ़ व्यक्तित्व हमेशा सीधा खड़ा रहता है। दुकान ने ही उन्हें कम बोलने वाला बनाया—जल्दी से बात न करना, बेवजह हँसी-मज़ाक न करना, और समय पर काम पूरा करना। कई बार लोग उन्हें सख्त समझ लेते हैं, मगर परिवार जानता है कि उनकी हर कठोर बात के पीछे एक गहरी चिंता छिपी होती है। अर्जुन के लिए वे एक नियम की तरह हैं—जिसे तोड़ा नहीं जाता, बल्कि समझा जाता है। अर्जुन की संवेदनशीलता जहाँ माँ से आई, वहीं उसकी जिम्मेदारी और दृढ़ता के बीज उसके पिता ने बोए हैं। महेश शर्मा उस पिता का नाम है… जो बहुत कुछ नहीं कहते, लेकिन दिल में हमेशा अपने परिवार को सुरक्षित रखने की आग लिए चलते हैं।

रिया शर्मा, घर की रौनक… एक ऐसी लड़की जो जहाँ खड़ी हो जाए, वहाँ माहौल हल्का, हंसमुख और अपनापन से भरा हो जाता है। उसकी मुस्कान में ऐसा सहज पन है कि लोग उससे बातें किए बिना नहीं रह पाते। लोगों से संपर्क बनाने की उसकी कला तो जैसे उसके व्यक्तित्व में ही घुली हुई है—पहली मुलाक़ात हो या पुराना रिश्ता, रिया हर जगह अपना रंग भर देती है। वह समझदार है, दिल की अच्छी है… बस कुछ चीज़ें—खासकर जटिल बातें—उसे थोड़ा देर से समझ आती हैं, पर वह इसे अपनी कमजोरी नहीं बनने देती। रिया सीखने वाली है, और हर चीज़ को अपने तरीके से पकड़ने की कोशिश करती है। कहानी की शुरुआत में वह कला विषय से परास्नातक की पढ़ाई कर रही है। किताबों से ज़्यादा वह जीवन को पढ़ना पसंद करती है। यह पढ़ाई उसके भीतर की रचनात्मकता को और निखारने जैसी है—शब्दों, रंगों और भावनाओं की दुनिया उसे हमेशा खींचती है। अर्जुन से 2 साल बड़ी होने के बावजूद वह सिर्फ़ बहन नहीं, उसके लिए एक दोस्त भी है— कभी उसे हँसाने वाली, कभी उसे समझाने वाली, और कभी बस उसके साथ खड़ी रहने वाली। रिया का दिल साफ़ है, उसकी बातों में चमक है, और उसके व्यक्तित्व में वो गरमाहट है जो घर को घर बनाती है।

दीनानाथ शर्मा परिवार का वह शांत स्तंभ हैं, जिनका अनुभव घर की हर साँस में घुला हुआ है। उनकी आँखों में उम्र का नहीं, समझ का वजन है—और स्वभाव में एक हल्की-सी सख़्ती, जो भीतर की नरमी को ढकने की कोशिश करती है, मगर सफल नहीं हो पाती। उन्हें देखकर हर कोई समझ जाता है कि यह व्यक्ति बाहर से कठोर दिख सकता है, पर भीतर का दिल पानी जैसा साफ़ और दयालु है। धर्म उनके जीवन का आधार रहा है। लगभग पचास वर्ष की उम्र में ही वे भगवद् गीता, रामायण, शिव पुराण, विष्णु पुराण और जाने कितने ही ग्रंथ पढ़ चुके थे। उनकी बातों में शास्त्रों की गंभीरता भी होती है और जीवन के अनुभवों की सहजता भी। कभी-कभी वे घरवालों को कोई पंक्ति सुनाते हैं, और उस एक पंक्ति में पूरा जीवन समझ आ जाता है। काम के मामले में वे हमेशा सरल और अनुशासित रहे। अर्जुन की माता जी की दुकान में वे सुबह सबसे पहले पहुँचने वाले होते थे—दुकान की कुंडी खोलना, सब व्यवस्थित करना, और जब सुनीता मैडम पहुँच जातीं, तो वे शांति से घर लौट आते। शाम को फिर दुकान बंद करने का जिम्मा उनका ही होता था। उनके इस रोज़मर्रा के चलते घर और दुकान दोनों में एक लय, एक अनुशासन बना रहता था। दीनानाथ शर्मा परिवार की उस जड़ की तरह हैं, जो दिखाई ज़रूर कम देती है, पर पूरे घर को भीतर से थामे रखती है। उनकी सख़्ती में प्रेम है, उनकी चुप्पी में दुआएँ हैं, और उनकी उपस्थिति में एक सुरक्षित-सी गरमाहट बसी है।

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