
जिस दिन ऑपरेशन हुआ, उसी रात लगभग साढ़े सात बजे पिता जी को ऑपरेशन रूम से बाहर लाया गया। उनका नाम पुकारा गया तो मैं घबराहट में तुरंत आगे बढ़ा। तभी पता चला कि ऑपरेशन पूरा हो चुका है और पिता जी बाहर आ गए हैं।
जब मैंने पिता जी को पहली बार देखा, तो उन्हें पहचान नहीं पाया। मुझे अंदाजा भी नहीं था कि ऑपरेशन के बाद उनकी हालत इस हद तक बदल जाएगी कि मैं उन्हें पहचानने में हिचक जाऊं। किसी तरह आईसीयू में उनका बेड तैयार करवाया। जीजा भी मेरे साथ थे। पिता जी को वहीं छोड़कर मैं उनके लिए कंबल लेने बाहर गया।




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